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बाहर की दुनियां लेखनी प्रतियोगिता -04-Aug-2022

             रितिक  अमेरिका से अपने पिता के अंतिम संस्कार मे आया था। उसने आकर सभी काम बहुत निष्ठा से पूरे कर दिये थे। अब वह अपनी माँ को अपने साथ अमेरिका ले जाना चाहता था जिसके लिए उसकी माँ तैयार नहीं हो रही थी।


  रितिक की मम्मी उसे समझाते हुए बोली," देख बेटा मैने आज तक इस गाँव से निकल कर बाहर की दुनियां नहीं देखी है मै यहाँ से केवल तेरी ननिहाल  और वहाँ से यहाँ आई हूँ इसके अलावा मै कहीं नहीं गयी हूँ। इसलिए मुझे कहीं नही जाना। अब इस बुढा़पे में इन हड्डियौ को इधर से उधर दौडा़ने में कोई फायदा नहीं है।"

       रितिक अपनी भोली माँ को समझाते हुए बोला," माँ कुछ बाहर की दुनियाँ भी देखनी चाहिए। यह दुनियाँ बहुत रंग रंगीली है । मै आपकै अमेरिका  अवश्य घुमाना चाहता हूँ मै आपका बीजा बनवा रहा हूँ। "

     रितिक माँ बहुत पुराने खयालौ की थी। उनको कभी गाँव से शहर जाने की जरूरत नही हुई थी। उनके बेटी नौयेडा में रहती थी वह कभी वहाँ भी नहीं गयी थी।

        उनके बार बार मना करने पर भी रितिक ने उनका अमेरिका का टिकट करवा लिया। आज रितिक के पापा के न रहने के कारण ही उनको बाहर की दुनियाँ में जाना पड़ रहा था।

आज सुशीला ने पहली बार बाहर जाने के लिए इस घर को छोड़ना पड़ रहा था। रितिक अपनी माँ को जब एअर पोर्ट पर लेकर गया तो सुशीला वहाँ का हाल देखकर उनकी आँखें शर्म से झुक गयी थी। औरते  छोटे छोटे कपडे़ पहनकर  आदमियौ के हाथौ में हाथ डालकर वेशर्म होकर कह कहे लगाती हुई घूम रहीं थी।

      सुशीला ने तो कभी भी अपने सिर से साडी़ का पल्लू भी नहीं सरकने दिया था। सुशीला को यह सब देखकर इस दुनियाँ से घृणा हो रही थी। उनका जाने का  बिल्कुल मन नहीं था परन्तु वह रितिक के आगे उसकी सारी दलीलें फेल होगयी थी।

     वह रितिक के साथ प्लेन में बैठ गयी। कुछ ही देर में एक सुन्दर सी औरत उनके पास आई और वह अंग्रेजी में बोलने लगी। सुशीला की समझ में कुछ नही आररहा था। वह उनसे खाने के बिषय में पूछने आई थी कि आप वेज लैगे अथवा नानवेज।

     रितिक ने अपने व अपनी पत्नी के लिए खाने का आर्डर कर दिया सुशीला तो अपने लिए घर से खाना लेकर आई थी। सुशीला को वहाँ बैठने में भी दम घुट रहा था क्यौकि  वह पहली बार प्लेन में बैठी थी।

     सुशीला  आज अपने घर की दुनियां से निकलकर बाहर की दुनियां में पहुँच गयी थी। उसने ऐसी दुनियाँ कभी देखी ही नहीं थे। वहाँ सभी लोग मशीन की तरह भाग रहे थे कोई किसी बात नही करता था। 

      सुशीला यह सब तब देख रही थी जब वह एअर पोर्ट से घर जारहीं थी। घर पहुँच कर वह फ्रैस हुई और  भगवान की पूजा करने लगी। रितिक ने अमेरिका मे भी अपने घर में एक छोटा सा मन्दिर बना रखा था।

        सुशीला वहाँ परेशान रहने लगी क्यौकि वह एक कमरे में कैद होकर रहगयी थी। नकिसी की बात समझ में आती और न वहाँ का पहनावा अच्छा लगता।

     सुशीला को एक एक दिन एक साल के बराबर  लग रहा था। बेटा बहू दोनौ काम पर चले जाते थे काम करने वाली आती काम करके चली जाती न किसी बात करना इसी तरह खाना बनाने वाली खाना बनाकर रख जाती।

     सुशीला को उनका खाना मजबूरी में खाना पड़ता था क्यौकि उनको गैस जलाना नही आता था। बेटा बहू रात को लेट आते थे उनसे मिलना छुट्टी वाले दिन होता था।

     सुशीला ने बेटे से अपने घर बापिस जाने की जिद पकड़ली । रितिक ने उनको भारत जाने के लिए प्रबन्ध कर दिया कोई जारहा था उसके साथ टिकट बनवा दी।

       एअर पोर्ट पर सुशीला की बेटी लेने आगयी थी। इस तरह सुशीला उस बाहर की दुनियां से बापिस अपने घर आकर ही सकून मिला। वह गाँव मे अपनौ से मिलकर खुश हुई।

आज की दैनिक प्रतियौगिता हेतु रचना

नरेश शर्मा " पचौरी 

 04/08/2022



       

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11 Comments

Kusam Sharma

14-Aug-2022 07:09 AM

shweta soni

05-Aug-2022 10:19 AM

Nice 👍

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Abhinav ji

05-Aug-2022 07:26 AM

Very nice👍

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